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बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

महाभारत २०१९-1


देश में महंगाई की मार के कारण जनसाधारण अस्वस्थ है,
सरकारी तंत्र को रिश्वत न देने के कारण गाँवों में बच्चों को शिक्षा देने वाले स्कूल सरकार ने बंद करा दिए है, उच्चतर शिक्षा जनसाधारण की पहुँच के बाहर कर दी गयी है,
एक और किसी को भी समय पर न्याय नहीं मिलता, दूसरी और सरकार २५ वर्ष पुराने बोफोर्स मुद्दे पर लोगों को बेवक़ूफ़ बना रही है.
मोबाइल कंपनियां ग्रामीण लोगों से धन एकत्र करके भी उन्हें उचित सेवा नहीं दे रही हैं, उनके नेटवर्क कार्यकारी नहीं हैं. इस पर भी सरकार ने मोबाइल रखना अनिवार्य कर दिया है.
सरकार का इन वास्तविक समस्याओं पर कोई ध्यान न होकर केवल आधार के नाम पर जनमानस को व्याकुल कर रखा है.  
आधार के कारण -
किसी का राशन बंद है तो किसी का इलाज, किसी की शिक्षा बंद है तो किसी का रोजगार, किसी की बिजली बंद है तो किसी का बैंक खाता, किसी के लिए न्याय के दरवाजे बंद हैं तो किसी की रेल यात्रा,  
देश के कंप्यूटर केन्द्रों पर आधार से आहत निर्धन लोगों की भीड़ लगी रहती है, किन्तु गरीबों की चीख-पुकार हिन्दू शासकों को सुनाई नहीं देती.
यदि फिर एक बार हिन्दू सरकार बनी तो समझो कि देश के उत्पादक लोगों को हिन्दू राष्ट्र के शूद्र घोषित कर दिया जायेगा, जिन्हें शिक्षा पाने का तो अधिकार ही नहीं होगा.

असली भारत का धर्म-निरपेक्ष मोर्चा

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

भारत में जन-शिकायत निस्तारण


भारत में जन-समस्याओं की संख्या में वृद्धि होती जा रही है क्योंकि इनके निस्तारण के गंभीर प्रयास न किये जाकर केवल दिखावे पर सार्वजनिक धन का दुरूपयोग किया जा रहा है. सर्वप्रथम हम यह जानें की जन-समस्याएँ उगती कहाँ से हैं. सरकार के निम्नतम स्तर के कर्मचारी जन-साधारण के संपर्क रखने एवं सार्वजनिक कार्यों के निष्पादन हेतु नियुक्त होते हैं. उनके बड़े अधिकारी उनका दिशा-निर्देशन करते हैं किन्तु उनका जन-संपर्क नगण्य होता है. यदि निम्नतम स्तर के कर्मचारी सही मार्गदर्शन में अपना कार्य कुशलता से करते रहें तो जन-समस्याओं के उपस्थित होने की सम्भावना नगण्य हो जाती है. चूंकि इनके मार्गदर्शन में लापरवाही अथवा अधिकारीयों के स्वार्थसिद्धि हेतु होते हैं, इसलिए निम्नतम स्तर के कर्मचारी अपने कर्त्तव्य-निर्वाह में लापरवाही भी करते हैं और भृष्टाचार भी, जिससे जन-समस्याएँ उगती हैं.
जिस स्तर से समस्याएँ उगती हैं, उस स्तर पर अथवा उस स्तर के कर्मियों पर निर्भर होने से जन-समस्याओं के समाधान नहीं हो सकते, केवल इसके प्रदर्शन हो सकते हैं. राज्य और केंद्र सरकारें ऐसा ही कर रही हैं, इसलिए जन-समस्याओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, किसी का कोई समाधान नहीं होता, इसलिए जन-साधारण बुरी तरह हताश एवं परेशान हैं. मैं अपने अनुभवों के कुछ उदाहरणों से इस बिंदु को स्पष्ट करना चाहूँगा.
मेरे ग्राम खंदोई के पूर्व प्रधान ने ग्राम की गलियों में प्रकाश हेतु 15 सौर-प्रकाश स्तम्भ लगवाये थे, जिनकी 5 वर्ष की गारन्टी थी. किन्तु प्रधान ने १ वर्ष के अन्दर ही स्वयं एवं उसके कुछ सहयोगियों ने उन स्तंभों में से अधिकांश की बैटरियां चुरा लीं. इसकी शिकायत मैंने जिलाधिकारी एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री को भेजीं, जिन्होंने उन्हें खंड विकास अधिकारी को एवं उसने एक उप खंड विकास अधिकारी को जांच हेतु भेज दी. उप खंड विकास अधिकारी शिकायत पत्र के साथ दोषी ग्राम प्रधान के पास गया, और कुछ लेन-देन करके शिकायत को नकार दिया गया.
नोट-बंदी के समय मैंने पंजाब नेशनल बैंक के ऊंचागांव शाखा प्रबंधक एवं क्षेत्रीय प्रबंधक की सांठ-गाँठ से कालेधन के नोटों की की गयी अवैध बदली की शिकायत सेंट्रल पब्लिक ग्रिवांस एंड मोनिटरिंग सिस्टम पर की, जिसे उसी बैंक के बुलंदशहर सर्किल ऑफिसर को निस्तारण हेतु भेज दिया गया जब की सर्किल ऑफिसर क्षेत्रीय प्रबंधक के अधीन होता है जिससे क्षेत्रीय प्रबंधक के विरुद्ध कार्यवाही की अपेक्षा नहीं की जा सकती.  
मेरे ग्राम के एक व्यक्ति ने भाजपा के बुलंदशहर जिला पंचायत अध्यक्ष को दावत देकर एवं जातीय सम्बन्ध के कारण अपने घर के लिए कंक्रीट की सड़क बनवाने की स्वीकृति प्राप्त कर ली, जबकि ग्राम के दो अन्य सार्वजनिक रूप से बहूपयोगी मार्ग बहुत बुरी हालत में हैं. इसकी सूचना मिलने पर मैंने इसकी शिकायत २८ दिसम्बर २०१७ को जिलाधिकारी बुलंदशहर से की, जहाँ से इसे मुख्य विकास अधिकारी को एवं वहां से जिला पंचायत के जूनियर इंजिनियर को भेज दिया गया. इसमें कुछ विवेक की आवश्यकता थी कि जिला पंचायत का जे ई अपने अध्यक्ष की इच्छा के विरुद्ध कुछ कर सकता है अथवा नहीं.
मामले की गंभीरता के कारण इसी की दूसरी शिकायत 29/12/2017 को मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय के जनसुनवाई पोर्टल पर की जहाँ से स्वचालित कंप्यूटर द्वारा इसे जिलाधिकारी को भेज दिया गया. जहाँ से शिकायत को खंड विकास अधिकारी को एवं वहां से एक जूनियर इंजिनियर को जांच हेतु भेज दिया गया जो अभी तक वहीँ लंबित है. इसके बाद जिलाधिकारी अथवा खंड विकास अधिकारी को इस से कोई सरोकार नहीं है कि जूनियर इंजिनियर इसपर कुछ करता है अथवा नहीं. खंड विकास कार्यालय में जूनियर इंजिनियर एक अस्थायी संविदाकर्मी है एवं जिला पंचायत अध्यक्ष की तुलना में बहुत छोटे स्तर पर है, इसलिए वह शिकायत के बारे में कुछ भी करने में सक्षम नहीं है. उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने तो शासन-प्रशासन का पूरा कार्य जिलाधिकारियों के ऊपर छोड़ दिया है,  
जन-शिकायतों के सटीक निस्तारण हेतु यह आवश्यक है की उन्हें जनपद स्तर के अधिकारियों से नीचे कदापि न भेजा जाए, उनकी जांच, वांछित कार्यवाही एवं दोषियों को दंड जनपद स्तर पर ही निर्धारित हों. यदि कोई शिकायत जनपद स्तर के अधिकारी के विरुद्ध है तो उसका निस्तारण मंडल स्तर पर किया जाना चाहिए.
केंद्र सरकार जन-शिकायत निदेशालय (पब्लिक ग्रिएवांस डायरेक्टरेट) के माध्यम से अधिकांश शिकायतें प्राप्त करता है जो प्रशासनिक सुधार मंत्रालय के अधीन है. किन्तु मेरा अधोलिखित व्यक्तिगत अनुभव सिद्ध करता है कि इस निदेशालय में प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है.
प्रधानमंत्री को भेजी गयी मेरी जन-शिकायत पंजीकरण संख्या PMOPG/E/2017/0653718 के बारे में मुझे 20/1/2018  को ईमेल पर सूचना दी गयी कि उसका निस्तारण कर दिया गया है जिसका विवरण जानने के लिए मुझे निदेशालय की वेबसाइट पर लॉग इन करने का परामर्श स्वचालित तंत्र द्वारा दिया गया. तदनुसार मेंने दिनांक 20/1/2018 को उक्त वेबसाइट पर पंजीकरण कर अपना मोबाइल एवं ईमेल वेरीफाई कराये. इसके बाद भी वेबसाइट पर मेरी उक्त जन-शिकायत की कोई सूचना उपलब्ध नहीं हुई. इसी वेबसाइट पर मैंने पुनः 23/1/2018 को लॉग इन किया किन्तु मुझे निराशा ही मिली. इसके बाद मैंने लगभग 11 बजे प्रातः निदेशालय से संपर्क हेतु वेबसाइट पर दिए गए निदेशक एवं संयुक्त सचिव के फ़ोन नंबरों क्रमशः 23742536 एवं 23741006 पर संपर्क के प्रयास किये किन्तु किसी ने फ़ोन नहीं उठाया. इससे सिद्ध होता है कि जन-शिकायतों के नाम पर देश के परिश्रमी वर्ग की कमाई को बड़े-बड़े ऐसे अधिकारीयों के वेतन-भत्तों एवं अकूत सुख-सुविधाओं आदि में बहाया जा रहा है, जो अपने कार्यालयों में आना भी उचित नहीं समझते. देश डूब रहा है, सरकार दिवास्वप्न में लीन है.
इस प्रकार मैं पाता हूँ कि जन-समस्याओं के निस्तारण में किसी अधिकारी की कोई रूचि नहीं है, बस शिकायत-पत्रों को अपनी-अपनी मेजों से दूर फेंकने को ही अपना कर्तव्यपालन समझे बैठे हैं. भृष्टाचार एवं अनियमितताओं के विरुद्ध जन-शिकायते लोगों के जागरूक होने की लक्षण हैं, साथ ही शासन-प्रशासन द्वारा इनकी अव्हेलना लोकतंत्र-विरोधी है, देश में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना के लिए यह अत्यावश्यक है की जन-शिकायतों का शासन-प्रशासन द्वारा समयबद्ध एवं समुचित निस्तारण हो.
इंजिनियर राम बन्सल
सुपुत्र स्वतन्त्रता सेनानी स्व० श्री करन लाल 
ग्राम खंदोई, जनपद बुलंदशहर, उ० प्र० 

सोमवार, 9 जून 2014

गंगा प्रदूषण और समाधान

मोदी सरकार के मंत्रियों एवं सचिवों ने गंगा शुद्धिकरण के लिए समय की उलटी गंगा बहाने की योजना बनाई है, जिसके अंतर्गत गंगा तटों पर नए नगर और और व्यावसायिक केंद्र खोले जायेंगे जैसा कि प्राचीन काल में जल की सहज उपलब्धता के लिए किया जाता था। यह योजना एक कुशल व्यवसायी मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में बनी है, जिसके अंतर्गत गंगा को व्यवसाय के साधन के रूप में परिवर्तित किया जायेगा। इसी सन्दर्भ में मैं आज जब इंटरनेट पर गंगा-स्नान के चित्र खोज रहा था तब मुझे अनेक विदेशी वेबसाइट दिखाई दीं जिनमें गंगा में स्नान करती  हुई नग्न एवं अर्धनग्न भारतीय महिलाओं के चित्र कामुक लोगों को परोसे गए हैं। भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाली सरकार इसी कामुक व्यवसाय को गंगा तट पर पर्यटक स्थलों के निर्माण से प्रोन्नत करेगी जिसके लिए गंगा शुद्धिकरण को एक बहाने के रूप में उपयोग किया जायेगा।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

जंगली व्यवहार, दंड व्यवस्था और वास्तविक दोषी

गाँव के एक युवा ने मेरे साथ जो अशोभनीय व्यवहार किया था, उसका उसे कड़ा दंड मिला था - पुलिस द्वारा और प्रकृति द्वारा भी. उसे न्यायालय से जमानत करानी पडी और अब कुछ समय तक बार-बार न्यायालय में उपस्थित होना होगा. इसके अतिरिक्त प्रकृति ने उसे और भी अधिक कड़ा दंड दिया - उसे बंदी बनाये जाने के दो दिन बाद उसके पिताजी की ह्रदय गति रुक जाने से मृत्यु हो गयी जो एक सज्जन एवं सहृदय व्यक्ति थे. गाँव के लोगों का मानना है कि उनके पुत्र द्वारा किये गए दुर्व्यवहार और बंदी बनाये जाने पर परिवार का अपमान उन्हें सहन नहीं हुआ. यद्यपि उन्हें ह्रदय की समस्या पहले से थी.

उक्त दोनों डंडों के कारण युवा को परिवार में बहुत विरोध झेलना पडा और उस पर उसके भाइयों द्वारा दवाब दिया गया कि वह शराब पीनी छोड़ दे अन्यथा वे उससे सम्बन्ध विच्छेद कर लेंगे. इसी शराब के कारण वह उद्दंडता करता था, लोगों को अपमानित करता था और इसी के कारण उसे उपरोक्त दोहरे दंड मिले. परिणाम बहुत आशाजनक हुए हैं - लगभग एक माह से अधिक समय से उसने शराब नहीं पी है और अब वह गाँव में निरंकुश नहीं घूमता है, तथा अपने परिवार के कृषि व्यवसाय पर पूरा ध्यान देता है. इस सब से गाँव के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

उपरोक्त विवरण देने का मेरा तात्पर्य यह है कि निरंकुश प्रकृति को अनुशासित करने के लिए दंड दिया जाना एक प्रभावी उपाय है. यद्यपि क्षमा भी सीमित प्रभाव रखती है किन्तु दंड की तुलना में यह प्रभाव तुच्छ होता है.

प्रत्येक व्यक्ति की मूल प्रकृति उद्दंडता है, किन्तु सामाजिकता, और दंड के भय से मनुष्य अनुशासित रहता है. अधिकाँश मनुष्य सामाजिकता के कारण स्वतः ही अनुशासित रहते हैं किन्तु शराब आदि के नशे में अथवा किसी लोभ वश, अथवा किसी विवशता में लोग उद्दंड व्यवहार करते हैं. इन तीन कारणों में से दो - नशा तथा विवशता, समाज की ही देनें हैं. शराब आदि नशीले द्रव्य सरकार द्वारा राजस्व लाभ के लिए प्रचारित, प्रसारित किये जा रहे हैं.जबकि इनका प्रभाव राष्ट्र को आर्थिक तथा सामाजिक क्षति पहुंचा रहा है. किन्तु देश के शासक-प्रशासक इस यथार्थ से अनभिज्ञ बने बैठे हैं.

कुछ वर्ष पूर्व हरियाणा के मुख्य मंत्री श्री बंसीलाल ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए अपने राज्य में शराब पर प्रतिबन्ध लगा दिया था जिसके परिणामस्वरूप अगले चुनाव में लोगों ने उन्हें सताच्युत कर दिया था. इस से सिद्ध होता है कि हमारा समाज एक गलत दिशा में इतना आगे बढ़ गया है कि अब उसकी समझ में गलत और सही का अंतराल मिट गया है. समाज का यही पतन कुछ लोगों को शराब आदि को इतना अधिक अभ्यस्त बना देता है कि वे मानवीय सभ्यता को त्याग जंगली व्यवहार करने लगते हैं. फिर यही विकृत समाज व्यवस्था उन्हें दंड देती है.
The Business of Spirits: How Savvy Marketers, Innovative Distillers, and Entrepreneurs Changed How We Drink 
अतः आवश्यकता इस की है कि हम समाज की दिशा बदलें और एक सशक्त जन मत का विकास कर सरकारों को विवश करें कि वे नशीले द्रव्यों के दुश्चक्र से समाज को बचाने के ओर साहसिक कदम उठायें. बिना जन मत के सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाएंगी.