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शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश - देश बेचने की तैयारी

कांग्रेस ने अपने शासनकाल में व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति देनी चाही थी, तब विपक्षी भाजपा ने इसका विरोध किया था। तब संवेदनशील कांग्रेस ने खुदरा व्यापार में 49 प्रतिशत तक ही विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति दी थी। अब भाजपा सत्ता में है, और भारतीयों के हित के प्रति एक अत्यधिक संवेदनाहीन व्यक्ति शीर्ष पर है जिसने १० जनवरी 2018 को खुदरा व्यापार में १०० प्रतिशत विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति देने की घोषणा की है। यह निर्णय इस देश में सदैव कलुष कर्म के रूप में जाना जायेगा क्योंकि इससे देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
वर्तमान में भारतीय परिवारों की आजीविका के साधनों का अनुमान निम्नांकित है -
राजनैतिक एवं धार्मिक पराश्रयी 3 प्रतिशत
उद्योगपति एवं भवन निर्माण व्यवसायी   4  प्रतिशत
मार्गदर्शन सेवा प्रदाता - लेखक, वकील, आदि 5  प्रतिशत
तकनीकी सेवा प्रदाता - लुहार, बढ़ई, आदि 8  प्रतिशत
नौकरी, मज़दूरी, आदि पेशेवर 15 प्रतिशत
व्यापारी 25 प्रतिशत
कृषक 40 प्रतिशत  
इस प्रकार वस्तुओं का व्यापार देश की जनसँख्या की आजीविका का कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा पेशा है, जिसमें सभी जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों, आय-वर्गों एवं क्षेत्रों के लोग सम्मिलित हैं। खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश से इन सभी परिवारों की आजीविका विदेशियों द्वारा अपनी साधन सम्पन्नता के बल पर छीन ली जायेगी।
सरकार का अपने निर्णय के पक्ष में कहना है कि व्यापारी कंपनियों के केवल स्वामित्व ही विदेशियों के हाथ में रहेंगे, कर्मचारी तो भारत के ही होंगे, इसलिए इससे रोजगार के अवसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार में बैठे नेता सुप्रसिद्ध कवि घाघ की उस उक्ति को भूल रहे हैं जो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है -
उत्तम खेती, माध्यम बान।  निषिध चाकरी भीख निदान।  
अर्थात - सम्पदा का कृषि द्वारा सृजन सर्वोत्तम कार्य है जिसके बाद वाणिज्य मध्यम वर्ग का है। नौकरी करना केवल विवशता में ही उचित है, जबकि भिक्षा को आजीविका बनाना पूर्णतः त्याज्य है।
व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश से देश की २५ प्रतिशत जनसँख्या की अधिक सम्मानजनक, लाभकर, वृद्धिजनक एवं स्वतंत्रतापरक आजीविका खतरे में पड़ जाएगी जिससे उन्हें निषिद्ध चाकरी ही अपनानी पड़ेगी।
वस्तुओं का व्यापार विदेशियों के हाथ में जाने के बाद वे देश में उत्पादित वस्तुओं के स्थान पर विदेशी वस्तुओं को ही लोगों को प्रदान करेंगे जिससे देश की अर्थव्यवस्था पूर्णतः उन्ही के हाथ में चली जाएगी। इससे देश का अस्तित्व समाप्त तो होगा ही, लोगों की स्वतन्त्रता भी छीन ली जाएगी।
अठारहवीं शताब्दी में भारत में आयी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना शासन स्थापित कर दिया था। तथापि देश के बहुल भाग में ब्रिटिश शासन होने के कारण देश का विभाजन नहीं किया गया। अब तो केंद्र सरकार के आमंत्रण पर हज़ारों विदेशी व्यापारी भारत में आएंगे और देश को टुकड़ों में तोड़-तोड़ कर अपने-अपने शासन स्थापित करेंगे। ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के लिए कितने ही देश भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी, कितनों ने कारागारों में यातनाएं सहीं, कितने ही परिवार उजड़ गए, कितने ही बच्चे अनाथ हो गए।  इस सबके चलते हुए भी देशभक्त न झुके, न टूटे, 90 वर्ष चले संघर्ष के बाद 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। इस स्वतंत्रता का महत्व वही लोग समझ सकते हैं जिनके पूर्वजों ने कुर्बानियां दीं।  देशद्रोही उस समय भी सक्रिय थे और ब्रिटिश शासकों से क्षमा याचना कर रहे थे, एवं देशभक्तों के विरुद्ध दमनचक्र में उनका साथ दे रहे थे।  आज वही संगठित होकर सत्ताधारी बने बैठे हैं। इसीलिए देश बेचा जा रहा है।
अतः सभी नागरिकों विशेषकर व्यापारी वर्ग से निवेदन है कि केंद्र सरकार के उक्त निर्णय का संगठित होकर विरोध करें, ताकि लोगों का आत्मसम्मान एवं देश का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे।  
राम बंसल
खंदोई, बुलंदशहर 203398

rambansal5@gmail.com